
संस्मरण जगत्जननी का चमत्कार
संस्मरण जगत्जननी का चमत्कार

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उनका आदेश था की कोई यज्ञ करना है और उस यज्ञ में जोड़े से लोग बैंठे व पूजन करें | पैसा था नहीं और जगह भी नहीं थी पर आदेश था तो टालने का तो सवाल ही नहीं था | जगह ढूंढी जा रही थी | एक मंदिर देखा गया पर पुजारी जी को खुद को मलाई खाने का बहुत शौक था सो “ना” करना पड़ा |
फिर एक उद्यान देखा तो ज्ञात हुआ की उसके लिए जयपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के ऑफिस जाना पड़ेगा | वहां जो साहब थे ( एक जाती विशेष के थे ) वो उस उद्यान का प्रयोग किसी भी कार्य के लिए नहीं करने देते थे | मजेदार बात यह है की उस उद्यान को केवल अलाभप्रद कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है | परन्तु उस जाती के नाच गाने के सारे अलाभप्रद कार्य उसी उद्यान में होते थे | मुझे पहले से यकीन था की ये व्यक्ति अव्वल दर्जे का गिरा हुआ आदमी है | इसलिए वहां नहीं गया |
सबको फ़ोन द्वारा न्योता भेजा गया था | कुल ४५० लोग थे , और अभी जगह भी नहीं मिली थी | पैसे का तो सवाल ही नहीं था | सोचा की जिस जगत्जननी को यह करना है वो तो मजे से रह रही है और हम चप्पल घिस रहे हैं | फिर अचानक एक बहुत बड़े मंदिर के बहार से गुजरते हुए आदेश हुआ की यज्ञ यहाँ होगा | हंसी छूटने लगी | वो मंदिर शहर के एक बहुत बड़े डॉक्टर साहब का था और हमे तो वे जानते नहीं थे | मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगा था जिस पर डॉक्टर साहब का नंबर था (चंदे के लिए) | फिर आदेश हुआ काल करो | जान जा रही थी पर कॉल किया | डॉक्टर साहब बोले मिलने आ जाईये | डरते डरते मिलने पहुंचे | हॉस्पिटल के बहार तक लाइन थी पर डॉक्टर साहब ने हमे अन्दर बुला लिया | बोले फरमाईये क्या चाहिये | मजबूरी बताई | डॉक्टर साहब बोले आप हमारे हॉल में ऐसा कर सकते हैं | अब लगा पैसे मांगेगें | हमने पैसे पूछे तो बोले की आपसे पैसे नहीं चाहिए | बड़ी हैरानी हुई | कुछ समय पहले ही एक बाबाजी से उनके मैडिटेशन प्रोग्राम के लिए लाखों रूपए लिए गए थे ( श्री श्री रविशंकर जी ) और मुझे मुफ्त में दे रहें हैं |
पर शायद माँ का आदेश था | माँ चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं
अब पैसे की बारी थी, भई हमे तो पैसे चाहिये थे , यज्ञ जो करना था | न-जाने कहाँ कहाँ से पैसा बरसा | केवल दस दिन में लाख रुपये इक्कठे हो गए | सारी तय्यारियां हो गयीं | थाल में प्रत्येक जोड़े के लिए षोडशोपचार पूजा की सामग्री रखी गयी | जल पात्र तक रखे गए थे | नौ कुंड बनाये गए जिसे हमने लेसर यन्त्र से नापकर एक सीध में बनाया | इनमे से तीन कुंड त्रिकोण अकार के थे तथा शत्रु बाधा से पीड़ित लोगों के लिए थे | प्रत्येक कुंड पर एक समय में पच्चीस के आस पास लोग बैठ सकते थे | पूजा के आरम्भ में प्रत्येक जोड़े नें थाल में देवी का षोडशोपचार पूजन किया | हल्दी की गाँठ को प्रतीकात्मक तौर पर रखा गया था | इसके पश्चात हवन हुआ | सभी आवश्यक नियमों का पालन हुआ | हवन के पश्चात् लोगों को यन्त्र भी दिए गये |
हवन के समय वो वहीँ मोजूद थीं | इसका बराबर अनुभव हो रहा था | हम अकेले ही लोगों को माइक्रोफोन से समझा रहे थे उसके बावजूद कोई बाधा नहीं आई |
इस समय बाहर बहुत तेज बरसात हो रही थी | हम सोच रहे थे की यदि उद्यान में ऐसा किया होता तो यज्ञ संपन नहीं होता | ये तो माई की इच्छा थी और उनका चमत्कार था |
लोगों से पैसा नहीं लिया ,सब कुछ इतने पैसे में ही सिमट गया | ये सब माई के आशीर्वाद से ही हुआ था वर्ना हम तो किसी लायक नहीं थे |
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