
एक चमत्कारी औघड़ से मुलाकात | संस्मरण
एक चमत्कारी औघड़ से मुलाकात | संस्मरण
उन्हे ([सं-पु.] – 1. अघोर मत का अनुयायी; अवधूत; अघोरी ) में जानता नहीं था | लोगों से सुना था और जो सुना था वो कुछ थोडा भयप्रद था | लोग कहते थे की वो गालियों से स्वागत करते हैं , सदा धोती पहने व उघडे बदन रहते हैं | उनका क्रोध तेज है और कभी कभी बहुत जोरदार डांट भी पड़ती है | और भी बहुत कुछ था उनके बारे में , पर जितने मुहं उतनी बातें | हमें मालूम था की औघड़ ऐसे ही होते हैं | मन में ऐसे लोगों से मिलने की जिज्ञासा रहती थी , कुछ चाहिए तो था नहीं , बस जिज्ञासा थी ,इसलिए हम भी कुछ लोगों के साथ उनके स्थान पर मिलने पहुँच गए |
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से स्थान पर उनका बसेरा था | वे बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय से पढ़े थे, तथा उनके गुरु (बड़े गुरूजी) उस प्रान्त के जाने माने व्यक्ति थे | हिन्दू व मुसलमान दोनों उन्हें समान रूप से चाहते थे | उनकी मूर्ती वहां के एक बाज़ार के बीचों बीच लगी है | बड़े गुरूजी एक औघड़ होने के साथ साथ एक प्रसिद्ध संगीतकार भी थे | बड़े अमीर खान साहब के साथ तबले पर संगत भी दे चुके थे | उनके अनेकों चमत्कारों के लिए वो उस क्षेत्र में विख्यात थे , हम उन्ही बड़े गुरूजी के शिष्य से मिलने पहुंचे थे |
हमारे साथ जो व्यक्ति गए थे , वो गुरूजी के लिए स्पेशल पान और मदिरा का इंतजाम कर रहे थे | हम जानते थे की औघड़ व वाममार्गी, तंत्र में पंचमकार का प्रयोग करते हैं , इसलिए ये सब हमारे लिए नया नहीं था |
वो एक बड़ी सी हवेली में रहते थे | ये हवेली किन्ही नवाब साहब की कोतवाली हुआ करती थी | बड़े गुरूजी भी इसी हवेली में रहे थे | इस हवेली में दो बड़े बड़े चौक थे, तथा दो मंजिल की यह हवेली शायद १९ वीं शताब्दी के प्रारंभ में बनी थी |
गुरूजी एक दुबले अधेड़ उम्र के व्यक्ति थे तथा जब हम पहुंचे तब वे झाड़ू लगा रहे थे | वे खड़े होकर सबको देख रहे थे , उनसे बात चीत कर रहे थे , पर एक भी गाली का प्रयोग नहीं हुआ | फिर हमारी और मुड़े और एकटक देखते रहे | फिर सबको अन्दर जाने के लिए कहा | हमें तो कुछ भी भय प्रद नहीं लगा | न कोई गाली ना डांट , ऊपर से वे पूर्ण वस्त्र पहने हुए सजे हुए खड़े थे | हमारे साथ गए लोगों को कुछ हैरानी हुई थी | यह सब उनके लिए बिलकुल नया था |
उसके पश्चात हम ऊपर की मंजिल पर बड़े गुरु जी की गादी के दर्शन करने पहुंचे | यह एक बहुत बड़े आकार का कमरा था | वहां बड़े गुरूजी के जीवन काल में प्रयोग किया सामान भी मौजूद था | सभी सामान बहुत विचित्र था | बहुत बड़े बड़े फरसे और एक बहुत बड़े आकार की दुनाली भी वहां रखी थी | ऐसी बन्दूक पहले ऊठों व हाथियों पर लाद कर प्रयोग की जाती थी | उनकी गादी के ठीक सामने एक बड़े आकार की शय्या भी मोजूद थी | हमें मालूम हुआ की बड़े गुरूजी बहुत बड़े आकर वाली वस्तुओं का ही प्रयोग करते थे | इसका कारण किसी को मालूम नहीं था |
बड़े गुरूजी की आदमकद तस्वीरें उस कमरे की दीवारों की शोभा बढ़ा रहीं थीं | इसी बीच सबको नीचे वाले एक कमरे में आने के लिए कहा गया | जब हम उस कमरे में पहुंचे तो वहां उस कमरे में काफी लोग थे | महफ़िल सजी हुई थी | मदिरा की बहुत सी बोतलें वही रखीं थी | गुरूजी बीच में बेठे लोगों से बात कर रहे थे | उन्होंने हमारी और देखा और पास आकर बैठने को कहा | हम उनके बगल में जाकर बैठ गए |
उसके बाद मदिरा की एक बोतल में उन्होंने अपने सीधे हाथ का अंगूठा डाला तथा कुछ मंत्र बुदबुदाये | यह तांत्रिक भोग था | उन्होंने अन्पूर्नेश्वरी व भैरव जो को भोग लगाया था |
तत्पच्शात सबकी गिलास में मदिरा परोसी जाने लगी | जब हमारी बारी आई तो वो रुक गए | अपना हाथ पीछे खींच लिया और बोले
“अरे भाई तुम तो पीते नहीं हो “|
फिर एक सेवक से बोले
“जाओ एक बड़ी गिलास में गाय का दूध ले आओ , और सुनो वो बादाम और काजू भी डाल लाना “
फिर कुछ रुककर बोले
“सुनो दूध में केसर भी मिलाकर लाना”
फिर हमारी और मुड़े और बोले
“क्यों सही कहा न मैंने “
उन्हें मालूम था की हम रात को गौ दुग्ध का सेवन करते हैं | उन्हें हमारे बारे में बहुत कुछ पहले से मालूम था |
फिर बातों ही बातों में पूछने लगे की हम इतने वर्षों बाद क्यों मिलने आये हैं | हमें इस बात पर थोड़ी हैरानी हुई | हमारे साथ जो लोग थे वो बोले की गुरूजी यह तो पहली बार यहाँ आये हैं | इस बात पर वो जोर जोर से हसने लगे |
वो किसी पूर्व जन्म की बात कर रहे थे |
हमारे सामने एक सुपर लार्ज साइज़ दूध का गिलास रख दिया गया | हमारी और देखकर बोले
“पीलो पेट में दर्द नहीं होगा”
वो जानते थे की हम क्या सोच रहे हैं |
फीर वो सबसे बात करने लगे | हमने महसूस किया की इतनी सारी मदिरा होने के बावजूद वहां मदिरा की गंध नहीं थी | किसी भी व्यक्ति को नशा नहीं हो रहा था | ऐसा लग रहा था जैसे भैरव उनके जरिये मदिरा पान कर रहे हों | हम ये सोच ही रहे थे की वो हमारी और मुड़े और बोले
“ये सब भूत हैं | यहाँ मदिरा भैरव जी ले लेते हैं | फिर एक व्यक्ति की और ऊंगली करके बोले , वो देखो भूत , और हसने लगे “
वो व्यक्ति अजीब हरकतें कर रहा था | सबकुछ बहुत विचित्र था | वहां जाम पे जाम खाली हो रहे थे पर नशा नदारद था |
हमारे मन में एक आध्यात्मिक जिज्ञासा थी |
इतने में गुरूजी हमारी और मुड़े और बोले
“जिसे तुम ध्यान के समय देखते हो उसे बिरला ही देख पाता है | बहुत वर्षों की तपस्या के बाद ऐसे दर्शन होते हैं | तुम बहुत भाग्यशाली हो की तुम उन्हें साक्षात् देख लेते हो | तुम्हारे पिछले जन्म की तपस्या का फल है “
हमें मालूम था वो क्या कह रहे हैं | हमारे मन में जो प्रश्न था यह उसका उत्तर था | फिर हमें बोले
“ जाओ ऊपर जो गुरूजी की शय्या है वहां जाकर सो जाओ, तुम जल्दी सो जाते हो , और अब तो तुम्हारी जिज्ञासा भी शांत हो गयी है “
हम जानते थी की वो हमारी मन की हर बात पढ़ लेते हैं | हमने उन्हें प्रणाम किया और ऊपर जाकर उस बड़ी सी शय्या पर लेट गए | लेटे लेटे हम गुरूजी से हुए संवाद के बारे में सोचने लगे | फिर मन को शांत करते हुए ,हमने बड़े गुरूजी की सामने रखी तस्वीर को प्रणाम किया | नजाने कब हमारी आंख लग गयी |
नींद में न मालूम कितना समय बीता था , पर शायद आधी रात के पश्चात हमें ऐसा लगा की हमें कोई जगा रहा है | ऑंखें खोली तो देखा की उनकी एक भक्त हमें जगा रही थीं | उन्होंने पुछा की आप यहाँ कैसे सो रहे हो | उनका कहना था की वहां सोना निषिद्ध है | हमने उन्हें बताया की गुरूजी ने यहाँ सोने को कहा है तो उन्हें बहुत हैरानी हुई | हमें बाद में मालूम हुआ की गुरूजी वहां किसी को सोने नहीं देते हैं | बहुत पहले एक विदेशी गलती से वहां सो गया था | उसे वहां सोने पर एक डरावनी शक्ति का सामना करना पड़ा था जिससे वो बहुत घबरा गया था और लगभग विक्षिप्त हो गया था | उस हादसे के बाद से वहां कोई नहीं सोता था | पर हम तो गुरु आज्ञा से सो रहे थे और इसलिए हम वापिस लेट गए | उसके बाद किसी ने हमें तंग नहीं किया और हम निश्चिन्त सोते रहे |
सुबह उठने पर, स्नान के पश्चात हम उस बड़ी सी हवेली का भ्रमण करने लगे | वो पुरानी सी हवेली हमें जानी पहचानी सी लग रही थी फिर भी उसे देखने की जिज्ञासा थी | उस हवेली के नीचले तल का अधिकांश हिस्सा एक लाइब्रेरी था | उस हवेली में बहुत से कमरे थे | वो हवेली कोतवाली का हिस्सा थी इसलिए वहां एक पुरानी जेल भी मौजूद थी | एक कमरे में दो गायें बंधीं हुई थीं | गुरूजी को पौधों का शौक था इसलिए सब जगह पौधे उगाये गए थे |
हमारी दिलचस्पी तो पुस्तकों में थी | हमें पुस्तकें पढने का बहुत शौक है और हम वहां पड़ी पुस्तकें देखने लगे | एक पुस्तक बहुत पुरानी और बड़ी दिलचस्प थी | हमने सोचा की जो अच्छी पुस्तकें हैं उन्हें गुरूजी से पूछकर जीरोक्स करवा लेंगे | हम गुरूजी से पूछने के लिए पहुंचे तो वे बोले की तुम जो चाहे वो पुस्तक ले जाओ , जब पढ़ लो तो वापिस कूरियर कर देना | हमें अच्छा तो बहुत लगा परन्तु हम उनसे पहली बार मिले थे | ऐसा करना ठीक नहीं था इसलिए वो पुस्तकें हमने वापिस रख दी |
हम बड़े गुरूजी की गादी वाले कमरे में पहुंचे तो वहां भी बहुत पुस्तकें रखीं थी | हमने उनमे से एक पुस्तक उठाई और वहीँ बैठकर पढने लगे | पास ही रसोई में नाश्ता तैयार हो रहा था | अचानक हमें नजाने क्यों नाश्ते में पोहे खाने की इच्छा हुई | यह सोचकर हमें हसीं आ गयी क्योंकि उस छोटे से प्रदेश में शायद ही कोई पोहे के बारे में जानता था | इतने में गुरूजी का एक भक्त वहां आया | उसके हाथ में एक टिफिन था जिसे लेकर वो रसोई की और जा रहा था | गुरूजी गैलेरी में खड़े थे | उसने गुरूजी को प्रणाम किया और बोला
“गुरूजी पोहे लाये हैं , स्पेशल वाले, रसोई में रख देतें है”
गुरूजी हमारी और देखकर हसने लगे | हमें हैरानी हुई पर हम शांत रहे |
गुरूजी का एक दूसरा भक्त एक कुंडली लाया था | उनकी पुत्री का विवाह नहीं हो रहा था | गुरूजी कुंडली खोलकर देखने लगे फिर उसे बोले जाओ वो लड़का (हमारी और पॉइंट करके ) वहां बैठा है उस से पूछ लो | उस भक्त को थोड़ी हैरानी हुई | गुरूजी बोले चिंता मत करो वो बहुत पहुंचा हुआ ज्योतिषी है , सब बता देगा | हम हैरान भी थे ,और थोड़े चिंतित भी | हैरान क्योंकि गुरूजी को बहुत कुछ मालूम था , वो बिना हमारे बारे में कुछ भी पूछे बहुत कुछ जानते थे | हम चिंतित थे क्योंकि गुरूजी अपनी मुसीबत हमारे गले बाँध रहे थे | इतने में उनका सेवक नाश्ता ले आया | गरम गरम पोहे प्लेट में हमारी क्षुधा शांति का इंतज़ार कर रहे थे | गुरूजी भी नाश्ता कर रहे थे और पोहे खाते खाते बीच बीच में हमारी और देख लेते थे और मुस्कुरा देते थे | उनकी वो रहस्यमयी मुस्कान हमें आज भी याद है |
उसके पश्चात भी हम उनसे कई बार मिले, और हर बार उनसे मिलना एक अलग अनुभव था | उनसे आध्यात्मिक विषयों पे बहुत बार वर्तालाप होता था | उनकी विद्वता का कोई सानी नहीं था और उनका भाषाओँ पे अच्छा अधिकार था |
एक बार वो हमसे बोले
“तुम यहाँ क्या करने आते हो , तुम तो संत हो और हम ठहरे औघड़ , संतों का औघड़ों से क्या काम “
प्रत्युत्तर था
“अध्यात्म और मन की शांति की तलाश तो दोनों को है , संत हो या औघड़, तलाशते तो सब एक ही चीज़ को है “
वे जोर जोर से हसने लगे | उनकी उन्मुक्त हसीं एक फक्कड़ की उन्मुक्त हसीं थी | उसमे कोई आवरण नहीं था | वो उन्मुक्त हसीं हमें आज भी याद है |
- आलोक जागावत
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