
गुप्त खजाना-मणिधारी सर्प \ वो फ़कीर \ जंगली शेर और संत हरिदास जी \ लाल कृष्ण अडवाणी \ भूतों का महल : संस्मरण
गुप्त खजाना-मणिधारी सर्प \ वो फ़कीर \ जंगली शेर और संत हरिदास जी \ लाल कृष्ण अडवाणी \ भूतों का महल : संस्मरण
हमारे पड-दादा अलवर के जाने माने व्यक्ति थे | वो बल्लूपुरा के जागीरदार थे और उन्हें ये जागीर अलवर महाराज की दी हुई थी | हमारे पड-दादा की चार पत्नियाँ थी और वो जागीरदारों वाला स्वभाव रखते थे | हमारे दादा उनकी एकलौती संतान थे तथा अपने पिता के कार्यकलापों से खिन्न होकर उन्होंने बहुत कम उम्र में उन्हें छोड दिया था | हमारे दादा अत्यंत संत स्वभाव के व्यक्ति थे और वो अपने पिता को छोड़कर अकेले ही अलवर चले आये थे | जब अलवर महाराज श्रीमान तेज सिंह जी को यह मालूम हुआ तो उन्होंने अलवर कलेक्ट्रेट के बाहर बना एक महल दादा जी को रहने के लिए दिया था |
भूतों का महल
उस समय दादा जी के सभी हितैषियों ने उन्हें चेताया था की यह महल भूतों का डेरा है | उस महल में डर के कारण दिन में भी कोई नहीं घुसता था | हमारे दादा जी ठहरे हनुमान जी महाराज के कट्टर भक्त और ऊपर से गर्म खून वाले, इसलिए वो बिना डरे उस बड़ी हवेली में रहने आ गए |
यह हवेली एक बड़े महल के बराबर थी और इसमें तीन बड़े चौक थे | इतने बड़े महल की देखभाल दो लोगों के लिए असंभव थी इसलिए दादा जी ने आस पास के सभी लोगों को आमंत्रण दिया की वो आकर इस महल में रह सकते हैं | उन्होंने कोई किराया नहीं लिया पर शर्त रखी, की महल को पुर्णतः साफ़ रखना होगा | फिर क्या था पूरा महल लोगों से आबाद हो गया | उसमे भूतों का प्रकोप तो था पर धीरे धीरे वो नष्ट हो गया | भूतों के दिखने की बहुत घटनाएँ हुई पर दादा जी की भक्ति के कारण सब बंद हो गयीं |
गुप्त खजाना-मणिधारी सर्प
उस महल के एक हिस्से में एक सुरंगनुमा जगह थी | यह जगह किसी दबे खजाने की लिए विख्यात थी | उस जगह एक मणिधारी सर्प भी था जिसे बहुत लोगों नें रात में वहां घूमते देखा था | दादा जी को खजाने का कोई मोह नहीं था और जब एक व्यक्ति उस खजाने के चक्कर में अन्दर गया तो वापिस नहीं लौटा | वो बहुत महीनों तक वापिस नहीं आया तो दादा जी व आस पास के लोगों ने जान लिया की वो अब जीवित नहीं है | दादा जी को लगा की इस तरह तो और लोग भी लालच के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे अतः उन्होंने सुरंग के मुहाने को बंद करवा दिया | वो मणि धारी सर्प अभी भी वहीँ दिखता है | कुछ समय पहले जब हम उस हवेली में रहने वाली एक वृद्धा से मिले तो उन्होंने बताया की उन्होंने उस मणिधारी सर्प को वहां कई बार देखा है | यह महल अलवर कलेक्ट्रेट के बहार अभी भी मोजूद है पर अब इसके दो चौक पूरी तरह खंडर हो चुके हैं |
वो फ़कीर
दादा जी अपने संत स्वभाव के लिए विख्यात थे और बहुत से जाने माने संत वहां दादा जी से मिलने आया करते थे | करपात्री जी महाराज , पगला बाबा व बहुत से फकीर दादा जी से मिलते थे | दादा जी उनका आदर सत्कार करते थे तथा वो उसी महल में ठहरते थे | दादा जी जात पात के खिलाफ थे इसलिए पीर-फकीरों का भी दादा जी से बहुत स्नेह था | मेरी दादी उनके लिए भोजन बनाया करती थी और उन्हें हिदायत थी की कोई भी संत उस जगह से खाली हाथ नहीं जाना चाहिए | उस समय हमारे पिताजी के जयेष्ट भाई पिलानी एन्जिनेयरिंग कॉलेज में पढ़ते थे | उन्हें अचानक एक ऐसे बुखार ने जकड लिया था जो उतरता चढ़ता रहता था , पर जाता नहीं था | कई जगह इलाज़ करने पर भी बुखार ठीक नहीं हो रहा था और वो इलाज़ के लिए अलवर वापिस आ गए थे | इस बात से हमारी दादी बहुत परेशान थीं | एक दिन वो एक फ़कीर के लिए भोजन बना रहीं थीं | वो साधारण सी वेश भूषा वाला फ़कीर बहुत पहुंचा हुआ सिद्ध था | उसने दादीजी के मन की चिंता को पढ़ लिया था | उसने पहले आराम से भोजन किया और फिर जाते समय दादीजी से बोला :
“बाई तु क्यों चिंता करे है , ले, में ले जासूं बाको बुखार”
उसने मेरे बाबोसा के शरीर पर हाथ फेरा और फिर बिना पीछे देखे वहां से रुखसत हो गया | उसके बाद मेरे बाबोसा को कभी वो बुखार नहीं हुआ |
इसी फकीर ने एक बार और एक और चमत्कार दिखाया था | एक व्यक्ति जिसके भाई पर फांसी का मुकदमा चल रहा नाजाने कहाँ से इस फकीर को ढूंढता हुआ उस महल तक आ पहुंचा | वो चाहता था की उसके भाई को प्राणदंड न मिले | फकीर ने उसकी पूरी बात सुनी और फिर उसे किसी से मिलने भेजा | यह दूसरा व्यक्ति लुखनऊ में एक साधारण सी मोची की दुकान चलता था | साधारण से दिखने वाले वह मोची पहले तो बहुत नाराज हुआ फिर बोला:
“जा तेरा भाई बच गया “
उस व्यक्ति के भाई को फांसी की सजा होनी थी पर उस सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया |
जंगली शेर और संत हरिदास जी
हमारे दादा जी से मिलने वाले सभी संतों में पगला बाबा और करपात्री जी महाराज बड़े विख्यात संत थे | हमारे दादा जी संस्कृत व अन्य भाषाओँ के जानकार थे तथा उनके अनेक हस्त लिखित ग्रन्थ आज भी वाराणसी में पगला बाबा आश्रम में मौजूद हैं |
उन दिनों अलवर के आस पास सरिस्का का घना जंगल था | उस क्षेत्र में स्वामी हरीदास जी का बड़ा नाम था | हमारे दादा जी उन्हें अपना गुरु मानते थे | स्वामी हरिदास जी जंगल में रहते थे और दादाजी उनसे मिलने वहां जाया करते थे | एक दिन प्रातः काल दादाजी उनसे मिलने पहुँच गए | स्वामी जी महाराज समाधी में थे इसलिए दादाजी वहीँ इंतज़ार करने लगे |
उन्होंने देखा की कुछ ही दूरी पर एक जंगली बाघिन बैठी थी | जब उन्होंने आस पास नजर दौडाई तो पाया की वहां तीन शावक भी थे | यह तीनो शावक बड़ी उम्र के थे इसलिए किसी को भी खा जाना उनके लिए बड़ी बात नहीं थी | दादाजी भी चुप चाप वहां बैठे रहे | इतने में बाघिन धीरे धीरे दादाजी की और खिसकने लगी , दादा जी डर रहे थे और मन ही मन हरी दास जी को याद कर रहे थे | इतने में स्वामीजी नें ऑंखें खोली | उन्होंने हाथ ऊपर उठाया और बाघिन की तरफ ऊँगली करते हुए जोर से हुंकार भरी | इस हुंकार से बाघिन डरकर पीछे हो गयी | दादाजी भी महाराज की शक्ति देखकर चकित रह गए थे |
स्वामी हरिदास जी आज भी वहां की लोगों के लिए पूजनीय हैं और अलवर के आस पास कई जगह दुकानों और घरों में आज भी हरिदास जी महाराज की पूजा होती है |
लाल कृष्ण अडवाणी
१९४८, में जब गांधीजी की हत्या हुई तो नाथू राम गौडसे को गिरफ्तार किया गया | नाथू राम संघी थे तथा जिस पिस्तौल से गांधीजी की हत्या हुई वो अलवर मेड थी | अलवर में पुलिस संघियों को ढूंढ रही थी | लाल कृष्ण अडवाणी भी संघी थे और पुलिस जोर शोर से उनकी तलाश कर रही थी | लाल कृष्ण जी उस समय हमारे इसी महल में बहुत दिनों तक छिपे रहे थे | हमारी दादी उन्हें भोजन खिलाया करती थीं |
पुलिस व चोर सभी उस महल से डरते थे | यह महल भूतों के लिए इतना कुख्यात था की दरवाजे खुले होने पर भी चोर कभी वहां चोरी करने नहीं आते थे | इसी डर से और कुछ दादा जी की ख्याति के कारण पुलिस ने कभी उस महल की तलाशी नहीं ली थी और लाल कृष्ण जी इसलिए गिरफ़्तारी से बच गए थे |
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