
संस्मरण: नगर सेठ ठाकुर श्री कृष्ण का चमत्कार / क्षण में पूरा किया मनोरथ
संस्मरण: नगर सेठ ठाकुर श्री कृष्ण का चमत्कार / क्षण में पूरा किया मनोरथ
हमारे जयपुर शहर में वृन्दावन बिहारी लाल श्री गोविद देव जी महाराज की बड़ी मान्यता है | उन्हें नगर सेठ की उपाधि प्राप्त है | मंदिर में ठाकुर जी की प्रतिमा ५६०० वर्ष पुरानी है | इस प्रतिमा को श्री कृष्ण के पडपोते वर्ज्रनाभ के द्वारा बनाया गया था | यह अद्भुत मनमोहिनी प्रतिमा बरबस ही देखने वाले के मन को हर लेती है | इस मंदिर की मुर्ति का सम्बन्ध श्री चैतन्य महाप्रभु से रहा है |
आज भी इस मंदिर में गौड मत के अनुसार ही उपासना होती है | जब हमने पहली बार मंगला दर्शन में भगवन को देखा तभी ठाकुर जी ने हमें ठग लिया था | उनकी मोहिनी मूरत ने ऐसा जादू किया की उनकी वो सूरत कभी ह्रदय से नहीं गयी |
एक दिन हम अपने विग्रह में ठाकुर जी की तस्वीर साफ़ कर रहे थे | तस्वीर काफी छोटी थी और हाथ से बार बार छूट रही थी | अचानक झुंझला के हमने ठाकुर जी को बोला की आप इतने छोटे क्यों हो | अब बताओ कैसे साफ़ करें आपकी तस्वीर | हमने कुछ देर में पूरा मंदिर साफ़ कर लिया और कुछ सोचते हुए तस्वीर यथा स्थान रखी और फिर इस धृष्टता के लिए भगवान से माफ़ी भी मांगी |
तभी दरवाजे की डोरबेल बजी | हमने दरवाज़ा खोला तो वहां दो युवक खड़े थे | हालाकि उन्हें युवक कहना गलत होगा क्योंकि वो तब हमारी ही उम्र के थे | खैर वो भीतर आकर बैठ गए | उन्हें ज्योतिष के जरिये कुछ जानना था |
कुंडली देखते समय बातों ही बातों में हमने उनसे उनके कार्य के बारे में पूछा | उन्होंने बताया की श्री गोविन्द देव जी मंदिर के बाहर उनकी छोटी सी दुकान है | ये सुनते ही हमें विचित्र सी अनुभूति होने लगी | जिज्ञासा वश हमने उनसे पुछा की क्या वो गोविन्द देव जी की तस्वीर भी बेचते हैं | वो बोले हाँ, हमारा तो उसी का काम है | इस समय तक हम बिलकुल भाव विभोर हो चुके थे | हमने पुछा की हमें एक बड़ी तस्वीर चाहिए कितने की होगी | वो बोले की आपको किस पोशाक में तस्वीर पसंद है | हमने कहा कोई भी चलेगी | हमें जिज्ञासा थी क्योंकि वो मंदिर हमारे घर से बाईस किलोमीटर की दूरी पर है , वहां से तस्वीर उसी समय लाना सम्न्भव तो था नहीं |
वो युवक उठा और नीचे गया | अपनी कार में से वो बहुत बड़े आकार वाली १२ तस्वीरें ले आया | बोला इनमे से जो भी अच्छी हो वो रख लीजिये | हमारे ह्रदय में अजीब सी वेदना हो रही थी | तस्वीर लेने के बाद वो युवक हठ करने लगा की पैसे नहीं लेगा | लाख समझाने पर भी उसने पैसे नहीं लिए | उसने बताया की वो किसी और काम से जा रहा था और तस्वीरें उसे दुकान पर पहुँचानी थी | रास्ते में उसके मित्र ने बातों बातों में हमारा ज़िक्र छेड़ा , और वो गाडी टर्न करके हमारे घर आ गए | उनका वहां आना अनायास ही तय हुआ था |
उन्हें विदा करने के पश्चात हमने तस्वीर को उठाकर सीने से लगा लिया | हमारी आख्नों में अश्रुधारा बह निकली थी | इश्वर की ऐसी अनुकम्पा देखकर संसार के प्रति एक वितृष्णा सी जाग उठी थी | आज तक तो हम उस इश्वर को चाहते आये थे आज उसने स्वयं हमारा वरण किया था | भक्त को भगवान् का प्रेम मिले तो सारी दुनिया बेमानी लगने लगती है | उस छोटी सी घटना ने हमें अह्सास दिलाया की भगवान् सच्चे प्रेम के भूखे हैं | मन से मांग तो संसार भी क़दमों में रख देते हैं |
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