
🪔 रावण, विजयदशमी और प्रभु श्री राम | कलयुग के 🦉 रावण
🪔 रावण, विजयदशमी और प्रभु श्री राम | कलयुग के 🦉 रावण
विजयदशमी पे आज जगह जगह रावण का दहन होगा | गली गली रावण जलेगा और हुडदंग मचेगा | कुछ असंस्कृत जन रावण को स्वाहा कर उल्लसित होंगे | पर क्या हम वास्तव में रावण दहन का अर्थ समझते हैं |
प्रभु श्री राम को भी कभी रावण से इतनी घृणा नहीं थी जितनी कलयुगी संतानों को है | वस्तुतः मर्यादा पुरुषोत्तम में तो घृणा का अंश भी नहीं था | कलयुग में रावण बहुत हैं और राम तो हैं ही नहीं | सबसे रोचक तथ्य तो यह है की रावण को स्वाहा करने वाले अधिकांश जन किसी रावण से कम नहीं हैं (अक्सर नेता ऐसा करते हैं ), क्योंकि जिसमें भी श्री राम का अंश होगा व् क्रोधित होकर या हर्षित होकर भी किसी का दहन नहीं करेगा | भगवान् श्री राम ने अनाचार के स्वरुप रावण का वध किया पर स्वयं अनाचार से ग्रसित होकर उन्होंने ऐसा नहीं किया | कलयुग में रावण तो जल रहा है , पर वो स्वयं रावण की भावना से स्वाहा हो रहा है | प्रभु श्री राम की भावना तो है ही नहीं |
ये विसंगति है की रावण को स्वाहा करने वाले अक्सर राजनीति और अनाचार की भावना से पीड़ित मिलेंगे ,और राजनीति व ईमानदारी कभी साथ साथ नहीं चलते , वस्तुतः जो राजनीतिज्ञ वो कभी ईमानदार हो ही नहीं सकता | तुलसीदास जी ने भी इसी का वर्णन किया था , की कलयुग में मूर्ख और धोखेबाज गद्दी पर आसीन होकर राजा बनेंगे और वास्तविक ज्ञानी, सत्यवान और सद्पुरुष अज्ञातवास सा जीवन जियेंगे | श्री अच्युत्तानंद जी ने भी अच्युत्तानंद मालिका में इसका वर्णन किया है की किस प्रकार कलयुग में केवल अनाचार का बोलबाला होगा और संतों का ढोंग रचने वाले और व्यापार करने वाले लोग सन्त महात्मा कहलायेंगे |
आज रावण तो प्रत्येक शरीर में है और वो जल नहीं रहा है , पाप उसका भोजन बनकर उसका आकार बढ़ा रहा है | बाहर के रावण तो सब जला रहें है , पर कण कण व् प्रत्येक रोम में व्याप्त उस अनाचारी रावण का क्या जिसे अंध मोह और धृष्टतता का भोजन लगातार मिल रहा है | प्रभु राम और उनकी मर्यादा तो पुस्तकों में सिमट के रह गयी है और रावण बनना तो ऐसा है, गोया कोई फैशन हो |
रावण का पूर्ण साम्राज्य है | नेता, अभिनेता, सरकारी अफसर जिसे देखिये रावण बनने की दौड़ में शामिल है | मादक पदार्थों का सेवन करने वाले कलाकार कहलाते हैं और जो वास्तव में कलाकार हैं , उनका कलयुगी संतानों ने शायद नाम भी न सुना हो | इंसानियत तो केवल पट्टचित्र के पात्रों में सिमट गयी है और जिन इक्के दुक्के लोगों में बची है वो सीता मैय्या की तरह अशोक की घनघोर वाटिका में बंदी हैं |
🦜 अभी भी समय है | विजयदशमी के इस पर्व पर सत्य और संयम के आयुधों का पूजन करें , और अपने हृदय में प्रभु श्री राम के गुणों का संचार करें | रावण तो स्वयं भस्म हो जायेगा , उस संकर भावना का जन्म ब्राह्मण और राक्षस के बीज से हुआ है केवल ब्राह्मण रहेगा तो राक्षस का भस्म होना निश्चित है |
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