जिन्हें कालचक्र भी प्रणाम करता है
जिन्हें कालचक्र भी प्रणाम करता है
(सभी बातों पे यकीन न करें , उस समय मेरी उम्र केवल 19 वर्ष थी, दैनिक भास्कर में प्रकाशित )
कहते हैं, विशाल वटवृक्ष का समावेश उसके बीज में होता है। उसी प्रकार मनुष्य के जन्म-जन्मांतरों के कर्मों का बीज रूप होता है उसकी जन्मपत्रिका। परंतु प्रश्न यह उठता है कि ज्योतिष का उद्देश्य क्या है। यदि फलादेश घटित होना ही है तो उसे जानकर क्या होगा? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ग्रहों की कार्यशैली समझना आवश्यक है, जिसे समझने के बाद मनुष्य अपनी इच्छाशक्ति के बल पर ग्रहों के पूर्व कर्मों के फल को न्यून कर सकता है।
मानव के भौतिक शरीर के अलावा उसका एक तेजस शरीर भी होता है। किरलियान फोटोग्राफी से उसे देखा जा सकता है और पश्चिमी वैज्ञानिकों ने इसी तेजस पिंड को ‘औरा’ कहा है। मनुष्य के पूर्वजनित संस्कार यदि अच्छे होते हैं तथा इस जन्म में वह यदि मतिभ्रष्ट न होकर अच्छे कार्य करता है तो उसका यह तेजस पिंड बलवान होता है, परंतु इसके विपरीत लोभ, वासना दंभ आदि उसे निर्बल कर विदीर्ण कर देते हैं | इसी छिन्न-भिन्न तेजस पिंड में मार्ग बन जाता है तथा इन्हीं मार्गों से होकर ग्रह रश्मियां आत्म-शरीर तक पहुंच कर उसे प्रभावित करती हैं। साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह तेजस पिंड ही हमारे भौतिक पिंड का सुरक्षा कवच है इसीलिए योगी, तपस्वी और मनुष्य की जन्मपत्रिका उसका काल-निर्धारण नहीं कर सकते। जिसे भारतीय आध्यात्म दर्शन में आत्मा का परमात्मा में विलीन होना कहा गया है, यह उसका भौतिक स्वरूप है। योगी की आत्मा शुद्ध होती है और उसका भौतिक अर्थ है उसके तेजस पिंड का इतना शक्तिशाली होना कि उसका आत्मस्वरूप अशुद्ध हुए बिना परम तत्व से एकाकार हो जाए। ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात मैं ब्रह्म हूं. इसका भी यही अर्थ है परंतु साधारण मनुष्य के लिए ऐसा कर पाना कठिन है, लेकिन फिर भी मनुष्य यदि क्रूर दशाओं में विचलित हुए बिना अच्छे कार्य करे तो बहुत हद तक संभव है कि वह ग्रहों के बुरे प्रभावों से बच जाए। योगियों, मनीषियों ने जिसे संस्कार कहा है, यह इस तेजस पिंड को बल प्रदान करने का वैज्ञानिक मार्ग है। ज्योतिष में इसीलिए तंत्र, मंत्र, रत्नों और यंत्र को महत्व दिया गया है। सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि ज्योतिष के लिए केवल पुस्तक अध्ययन या गणितीय दक्षता ही आवश्यक नहीं है , आवश्यक है आंतरिक दृष्टि, सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण शक्ति तथा काल को भेद देने वाली दक्षता क्योंकि किसी असाधारण जन्मपत्रिका का अध्ययन करते समय यदि साधारण ग्रह-बलाबल, दृष्टि तथा स्थिति से फलादेश किया गया तो अवश्य ही वह फलीभूत नहीं होगा। इसलिए फलादेश के निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
- शुक्र, गुरु और बुध क्रूर दृष्टिगत होने पर व्यक्ति को असत्य-भाषी बनाते हैं तथा ऐसा व्यक्ति कभी भी अंत में प्रसन्न नहीं रह सकता।
- पंचमेश पूर्वोजनित कर्मों का फल कहता है। यदि पंचमेश, दशमेश (कर्मभाव) तथा नवमेश सौम्य ग्रहों से दृष्ट हैं या दशम भाव में कोई सौम्य ग्रह उच्च का है तो पत्रिका के ग्रह प्रारंभ में दुख देने के उपरांत मनुष्य को अंत में प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
- पंचमेश उच्च होने पर व्यक्ति का ज्ञान अत्यंत सूक्ष्म होता है तथा उसमें मंत्रों को फलीभूत करने की दिव्य शक्ति होती है।
- केतु, शनि में ग्रह प्रारंभ में मनुष्य को पीड़ा देते हैं परंतु यदि मनुष्य का कर्म क्षेत्र उत्तम हो तो उसकी दशमेश की दशा में वह आनंदमयी हो जाता है।
- केतु, शनि अंत में हमेशा आनंद देते हैं (केवल कभी कभी शनि के परिपेक्ष्य में ऐसा नहीं होता) । मंगल प्रारंभ में आनंद प्रदान करता है, परंतु यदि दशमेश का पूर्वोजनित कर्म निर्बल हो तो मंगल अंत में मर्मांतक पीड़ा देता है। भले ही वह पत्रिका में कितना भी शुभ क्यों न हो।
- शनि सप्तम में अच्छा माना गया है, क्योंकि शनि उदास ग्रह है तथा सप्तम स्थान वासना के साथ-साथ वासना को रोकने का स्थान भी है। उदास ग्रह के उस भाव में रहने पर व्यक्ति वासना आदि मनोभावों को रोकने में सक्षम तो होता है परंतु साथ-साथ उसमें नम्रता नहीं होती। वह शक्तिशाली साधक हो सकता है, परंतु अपनी क्रूरता से अंत में दुख भी पा सकता है।
- नवम और द्वादश भाव समाधि के भाव हैं। इनका बली होना व्यक्ति को कष्ट सहने की अद्भुत क्षमता देता है।
- बृहस्पति उच्च और नीच दोनों जगह उचित फल देता है बशर्ते कि वो किसी क्रूर भाव में न हो तथा किसी अन्य किसी क्रूर गृह के साथ न हो । (ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु गुरु होता है , वह किसी का बुरा नहीं करता )
- शनि, चंद्रमा का योग दारिद्रय योग है। चंद्रमा मन है और शनि ‘क्रूर न्यायाधीश।’ शनि उदासीन ग्रह भी है। यदि यह योग सौम्य भाव में हो तो वह व्यक्ति उच्च व्यक्तित्व का होता है तथा सत्य विश्लेषण की उसमें अद्भुत क्षमता होती है। यहां पर भी कर्मेश का सौम्य होना आवश्यक
- केन्द्र में उच्च सौम्य ग्रह क्रूर ग्रहों के लाख दोषों को नष्ट कर देते हैं।
- ग्रहों के बल-निर्धारण क्रम में केतु, बृहस्पति तथा शुक्र पहले आते हैं। इनके बली होने पर क्रूर ग्रहों का फल न्यून होता है।
अगर यह बातें ध्यान में रखकर फलादेश किया जाए तो वह अवश्य ही फलीभूत होगा।
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