
संवाद , एक पहलवान , वास्तविक पीड़ा, महर्षि रमण , श्री ललितासहस्त्रनाम और दुर्लभ मंत्र
संवाद , एक पहलवान , वास्तविक पीड़ा, महर्षि रमण , श्री ललितासहस्त्रनाम और दुर्लभ मंत्र
वो आगंतुक छे फुट से भी ऊंचा था , इतना की घर का दरवाजा भी छोटा पड़ रहा था | उसके शरीर की मासपेशियाँ उसके शारीरिक डील डोल का विन्यास बता रहीं थीं | मेरे ऑफिस की सीट उसके शरीर के पीछे गुम हो गयी थी | कुंडली के बिना ही अहसास हो गया था की सामने बैठा व्यक्ति प्रौफैशनल एथलीट है | उसका बल व् पराक्रम उसके शरीर से फूट सा रहा था | मुझे लगा की ऐसे पराक्रमी व्यक्ति को मेरी जरूरत कैसे पढ़ गयी |
प्रश्न में गुरु होरा स्वामी और गुरु ही बाधक था | शनि मंगल एक दुसरे पे दृष्टि बनाये हुए थे | मुझे लगा ये तो रोगी है , पर किस चीज़ का , हट्टा कट्टा तो है | शायद कोई एक्सीडेंट हुआ हो |
मैंने पुछा तो उसके माथे पर लकीरें पढ़ गयीं |
“हां सर मेरा एक्सीडेंट हुआ था , कुछ साल पहले | पाँव में रॉड डली थी और मुझे प्रौफैशनल बोक्सिंग से हाथ धोना पड़ा | मेरा करियर चौपट हो गया और मेरा नैशनल में खेलने का सपना टूट गया “
“अभी क्या करते हैं आप “
“सर अभी तो एक बार में बाउंसर हूँ “
“करियर तो अभी ठीक है , आप कोई बीमारी हो गयी है क्या ?”
मेरे ऐसा कहते ही उसकी आँखों में आंसूं आ गये | एक्सीडेंट के बाद से उसके पैरों में घोर कष्ट था , और वो उसे सहन नहीं कर पा रहा था | मुझे हैरानी थी , इतना बलिष्ठ व्यक्ति और इतना सी पीड़ा सहने में कष्ट हो रहा है |
मुझे महर्षि रमण की कही एक बात याद आ गयी की पीड़ा और हर्ष मन की उपज हैं | मन इतना शक्तिशाली होता है की वो सब कुछ कर सकता है | यदि हम मन को साध लें तो पूरा जीवन साधा जा सकता है |
उस व्यक्ति को देख कर लग रहा था कि मन ही सब कुछ है | शरीर कितना भी बलिष्ठ हो पर मन उसे से भी अधिक बलिष्ट होता है | इसे ही साधक महादेवी की लीला कहते हैं | हर्ष और कष्ट तो छल हैं , मानो तो दिखते हैं और न मानो तो ओझल हो जाते हैं | वास्तव में ये जगत मिथ्या है, एक छल है, जिसकी सूत्रधार महादेवी है , तभी तो श्री ललितासहस्त्रनाम में देवी को “मिथ्याजगदअधिष्ठाना” कहा गया है |
पर यक्ष प्रश्न ये है की जब कष्ट हो रहा हो , पीड़ा हो , अनादर हो तो मन कैसे शांत हो |
पहलवान जी घोर कष्ट में थे और मैं उन्हें मन पर उपदेश देता तो क्या उन्हें सुनाई देता , उल्टा मैं ही उनके क्रोध का शिकार हो जाता |
वास्तव में ऐसा व्यक्ति स्वयं के आत्म स्वरुप को नहीं समझ सकता , क्योंकि उसका मन ही कमजोर है, पर मुझे तो उसका उपाय करना था | उसका मस्तिष्क तो बहुत एकाग्र था और यही एकाग्रता उसे शरीर में हो रही पीड़ा को भुलाने नहीं दे रही थी |
काफी सोच विचार के पश्चात मैंने उसे एक मंत्र दिया | उसे पूरी एकाग्रता से उस मंत्र को जपना था, ठीक पीड़ा के समय |
कुछ दिन बाद तो चमत्कार ही हो गया | मिठाई का एक डब्बा भिजवा दिया पहलवान जी ने | व्हाट्सअप सन्देश था |
“गुरूजी मिठाई का डब्बा भेजा है | मंत्र बहुत शक्तिशाली है | मेरा दर्द तुरंत बंद हो जाता है “
सन्देश पढ़ कर मुझे हर्ष हुआ | परन्तु सत्य ये है की मैंने वास्तव में उसे केवल गुरु का बीज मंत्र जपने को दिया था , जिस से दर्द का कोई नाता नहीं था | यहाँ पीड़ा पर उसके मन की एकाग्रता (एकाग्रता तो थी तभी तो पीड़ा के समय उसे कुछ और नहीं दिखता था ) और मेरा दृढ विश्वास काम कर रहा था | दुर्लभ मंत्र नहीं था , दुर्लभ तो उसका मस्तिष्क था , जो मन को पीड़ा का सन्देश ही नहीं भेज रहा था , क्योंकि वो पगला मेरे दिए मंत्र पे कहीं अटका था |
तो यही जीवन का मंत्र है , एकाग्र हो जाईये , मस्तिष्क को भटकने मत दीजिये | या फिर उसे कहीं भटका दीजिये | ऐसी कोई जगह जहाँ से वो बाहर न निकले , चाहे वो इश्वर हो , कार्य हो , य कुछ भी हो | वर्ना ये जगद तो महादेवी का नृत्य है , जो इसमें फंसता है , वो शिव को भूल जाता है | निरंतर अभ्यास से हम स्वयं को शरीर मात्र से अलग हो कर देख सकते हैं , उस पूर्ण ब्रह्म के रूप में जो हम सब में विराजमान है | इसलिए योगी जन मन को साधते हैं , ध्यान लगाते हैं ताकि एकाग्रता आये |
समझ लीजिये जिसका मन, मस्तिष्क बलिष्ट है , वही वास्तव में बलिष्ट पहलवान है |
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।”
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